Friday, August 5, 2022

कर लूंगा जमा दौलत ओ ज़र उस के बाद क्या

कर लूंगा जमा दौलत-ओ-ज़र उस के बाद क्या
ले   लूँगा  शानदार  सा  घर  उस  के  बाद क्या

(ज़र = धन-दौलत, रुपया-पैसा)

मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा मैं रिन्द
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या

(रिन्द = शराबी)

होगा जो शौक़ हुस्न से राज़-ओ-नियाज़ का
कर  लूंगा  गेसुओं में सहर उस के बाद क्या

(राज़-ओ-नियाज़ = राज़ की बातें, परिचय, मुलाक़ात), (गेसुओं =ज़ुल्फ़ें, बाल), (सहर = सुबह)

शे'र-ओ-सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया  में  होगा नाम मगर उस के बाद क्या

(शे'र-ओ-सुख़न = काव्य, Poetry)

मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँगा सैर
वापस  वही  पुराना नगर उस के बाद क्या

इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी 
बुझ जाएगा चराग़-ए-क़मर उस के बाद क्या

(ज़ीस्त = जीवन), (चराग़-ए-क़मर = जीवन का चराग़)

उठी   थी   ख़ाक,   ख़ाक  से  मिल  जाएगी  वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या

-ओम प्रकाश भंडारी "क़मर" जलालाबादी 









Wednesday, December 29, 2021

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा 
जो ख़ुद हम को ढूँढ रहा हो ऐसा इक रस्ता देखा 

दूर से इक परछाईं देखी अपने से मिलती-जुलती 
पास से अपने चेहरे में भी और कोई चेहरा देखा 

सोना लेने जब निकले तो हर हर ढेर में मिट्टी थी 
जब मिट्टी की खोज में निकले सोना ही सोना देखा 

सूखी धरती सुन लेती है पानी की आवाज़ों को 
प्यासी आँखें बोल उठती हैं हम ने इक दरिया देखा 

आज हमें ख़ुद अपने अश्कों की क़ीमत मालूम हुई 
अपनी चिता में अपने-आप को जब हम ने जलता देखा 

चाँदी के से जिन के बदन थे सूरज के से मुखड़े थे 
कुछ अंधी गलियों में हम ने उन का भी साया देखा 

रात वही फिर बात हुई ना हम को नींद नहीं आई 
अपनी रूह के सन्नाटे से शोर सा इक उठता देखा 

-ख़लील-उर-रहमान आज़मी

Saturday, December 18, 2021

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है 
पाँव तले जो मोती बिखरें झिलमिल रस्ता लगता है 

जाड़े की इस धूप ने देखो कैसा जादू फेर दिया 
बेहद सब्ज़ दरख़्तों का भी रंग सुनहरा लगता है 

(सब्ज़ = हरा)

भेड़ें उजली झाग के जैसी सब्ज़ा एक समुंदर सा 
दूर खड़ा वो पर्बत नीला ख़्वाब में खोया लगता है 

जिस ने सब की मैल कसाफ़त धोई अपने हाथों से 
दरिया कितना उजला है वो शीशे जैसा लगता है 

(कसाफ़त = गंदगी, प्रदूषण)

अंदर बाहर एक ख़मोशी एक जलन बेचैनी से 
किस को हम बतलाएँ आख़िर ये सब कैसा लगता है 

शाम लहकते जज़्बों वाली 'फ़िक्री' कब की राख हुई 
चाँद-रू पहली किरनों वाला दर्द का मारा लगता है 

-प्रकाश फ़िक्री

ज़िन्दगी की तलाश जारी है

ज़िन्दगी की तलाश जारी है
इक ख़ुशी की तलाश जारी है।

हर तरफ़ ज़ुल्मतों के मौसम में
रौशनी की तलाश जारी है।

(ज़ुल्मत = अंधेरा)

इस उदासी के ढेर के नीचे
इक हँसी की तलाश जारी है।

जो बचा ले सज़ा से हाक़िम को
उस गली की तलाश जारी है।

(हाक़िम  = न्यायाधिश, जज, स्वामी, मालिक, राजा, हुक्म करने वाला)

जो परख ले हमें यहां ऐसे
जौहरी की तलाश जारी है।

खो गया है कहीं कोई मुझमें
बस उसी की तलाश जारी है।

मिल गए हैं ख़ुदा कई लेकिन
आदमी की तलाश जारी है।

- विकास जोशी "वाहिद"  १३/१२/१९

Thursday, September 2, 2021

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा
हरिक शख़्स फिर आशिकाना लगेगा।

ये सांसें हैं जब तक ही दुश्वारियां हैं
सफ़र उसके आगे सुहाना लगेगा।

मयस्सर हूँ मैं मुस्कुराता हुआ पर
मुझे इक हँसी का बयाना लगेगा।

(मयस्सर = उपलब्ध)

कभी इससे बाहर निकल के तो देखो
तुम्हें जिस्म इक क़ैदख़ाना लगेगा।

निसाबों में होंगीं जहां नफ़रतें हीं
वहीं ज़हर का कारख़ाना लगेगा।

(निसाब = पाठ्यक्रम)

तलाशेंगे पहले वो कांधा हमारा
कहीं जा के तब फिर निशाना लगेगा।

ख़ुद अपना गुनाहगार हूँ मैं सो मुझको
तसल्ली किसी की, न शाना लगेगा।

(शाना = कंधा)

- विकास वाहिद