Friday, December 28, 2012

आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो,
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो।

चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर दिखो,
और अगर बैठो कहीं, तो मील का पत्थर दिखो।

सिर्फ़ दिखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं,
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो।

ज़िंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं,
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो।

आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन,
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो।

एक ज़ुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ,
वक़्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो।

एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते,
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो।

पंछी ! इनसे आ रही है, कातिलों की आहटें,
लड़के इन पूजाघरों से अपनी शाख़ों पर दिखो।

डर न जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली,
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो।

कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में,
मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो।

ऐशगाहें चाहती हैं सब लुटा चुकने के बाद,
तुम किसी तंदूर में हँसते हुए जलकर दिखो।
-माणिक वर्मा

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