अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे । बहुत ही विनम्र स्वाभाव के थे और दान पुण्य बहुत करते थे । एक बार गंग कवि को इन्होने बहुत बड़ा पुरस्कार दिया तो गंग कवि ने इनसे पूछा :
सीखे कहाँ नवाबजू ! ऐसी दैनी दैन ।
ज्यों ज्यों कर ऊँचे करो, त्यों त्यों नीचे नैन ।।
तो रहीम ने सकुचाते हुए उत्तर दिया:
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन ।
लोग भरम हमपर धरें, याते नीचे नैन ।।
सीखे कहाँ नवाबजू ! ऐसी दैनी दैन ।
ज्यों ज्यों कर ऊँचे करो, त्यों त्यों नीचे नैन ।।
From where
have you learnt to be so magnanimous,
As you give more and more, you become more and
more modestतो रहीम ने सकुचाते हुए उत्तर दिया:
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन ।
लोग भरम हमपर धरें, याते नीचे नैन ।।
The Giver is God, Who gives day and night. People think I am the giver, So I become more and more humble.
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