रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता ! छोड़ गई तू कहाँ मुझे
[(नक़्श-ए-पा = पैरों के निशान), (ख़ल्क़ = सृष्टी, जगत), (उम्र-ए-रफ़्ता = बीती हुई ज़िन्दगी)]
- ख़्वाजा मीर 'दर्द'
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता ! छोड़ गई तू कहाँ मुझे
[(नक़्श-ए-पा = पैरों के निशान), (ख़ल्क़ = सृष्टी, जगत), (उम्र-ए-रफ़्ता = बीती हुई ज़िन्दगी)]
- ख़्वाजा मीर 'दर्द'
No comments:
Post a Comment