ज़िन्दगी तनहा सफ़र की रात है
अपने अपने हौसले की बात है
किस अकीदे की दुहाई दीजिए
हर अक़ीदा आज बेऔकात है
(अक़ीदा = मन में होने वाला दृढ़ विश्वास), (बेऔकात = प्रतिष्ठाहीन)
क्या पता पहुँचेंगे कब मंज़िल तलक
घटते-बढ़ते फ़ासले का साथ है
-जाँनिसार अख़्तर
अपने अपने हौसले की बात है
किस अकीदे की दुहाई दीजिए
हर अक़ीदा आज बेऔकात है
(अक़ीदा = मन में होने वाला दृढ़ विश्वास), (बेऔकात = प्रतिष्ठाहीन)
क्या पता पहुँचेंगे कब मंज़िल तलक
घटते-बढ़ते फ़ासले का साथ है
-जाँनिसार अख़्तर
No comments:
Post a Comment