हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न तुम्हारे थे
(सुख़न = बात-चीत, संवाद, वचन)
रंग-ओ-ख़ुश्बू के, हुस्न-ओ-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे थे
(इस्तिआरे = रूपक, काव्य में अमूर्त का मानवीकरण)
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
(क़ौल-ओ-क़रार = वचन और प्रतिज्ञा)
जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए
जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे
(लाल-ओ-गुहर = हीरे-मोती)
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे
(तश्त-ए-फ़लक = आसमान की तश्तरी)
उम्र-ए-जाविदाँ की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे
(उम्र-ए-जाविदाँ = लम्बी उम्र, अमरता)
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हमसे जितने सुख़न तुम्हारे थे
(सुख़न = बात-चीत, संवाद, वचन)
रंग-ओ-ख़ुश्बू के, हुस्न-ओ-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे थे
(इस्तिआरे = रूपक, काव्य में अमूर्त का मानवीकरण)
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
(क़ौल-ओ-क़रार = वचन और प्रतिज्ञा)
जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए
जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे
(लाल-ओ-गुहर = हीरे-मोती)
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे
(तश्त-ए-फ़लक = आसमान की तश्तरी)
उम्र-ए-जाविदाँ की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे
(उम्र-ए-जाविदाँ = लम्बी उम्र, अमरता)
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
No comments:
Post a Comment