Sunday, September 25, 2016

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी जो तारा तो जमीं पर नहीं गिरता

गिरते हैं समंदर में बड़े शौक़ से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता

समझो वहां फलदार शजर कोई नहीं है
वह सेहन कि जिसमें कोई पत्थर नहीं गिरता

(शजर = पेड़)

इतना तो हुआ फ़ायदा बारिश की कमी का
इस शहर में अब कोई फिसल कर नहीं गिरता

इनआम के लालच में लिखे मद्ह किसी की
इतना तो कभी कोई सुख़नवर नहीं गिरता

(मद्ह = तारीफ़)

हैरां है कई रोज से ठहरा हुआ पानी
तालाब में अब क्यों कोई कंकर नही गिरता

इस बंदा-ए-खुद्दार पे नबियों का है साया
जो भूख में भी लुक्मा-ए-तर पर नहीं गिरता

(लुक्मा-ए-तर = अच्छा भोजन)

करना है जो सर म'अरका-ए-जीस्त तो सुन ले
बे-बाज़ू-ए-हैदर दर-ए-ख़ैबर नहीं गिरता

क़ायम है 'क़तील' अब यह मेरे सर के सुतूँ पर
भूचाल भी आए तो अब मेरा घर नहीं गिरता

(सुतूँ = खम्बा)

-क़तील शिफ़ाई

https://www.youtube.com/watch?v=bwAN7hh2VYY&feature=player_embedded

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