Sunday, September 25, 2016

ख़ून अपना हो या पराया हो

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर

(नस्ल-ए-आदम = इंसान का वंश), (मग़रिब = पश्चिम), (मशरिक = पूर्व),(अम्न-ए-आलम = दुनिया की शांति)

बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है

(रूह-ए-तामीर = आत्मा का निर्माण), (ज़ीस्त = जीवन)

टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है

इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।

-साहिर लुधियानवी

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