Thursday, October 6, 2016

तिशनगी जिसकी सराबों पे भरोसा न करे

तिशनगी जिसकी सराबों पे भरोसा न करे
घर में बैठा रहे सहराओं में जाया न करे

(तिशनगी = प्यास), (सराबों = मृगतृष्णाओं), (सहराओं = रेगिस्तानों)

यूँ मेरे माज़ी के ज़ख़्मों को कुरेदा न करे
भूल बैठा है तो फिर याद भी आया न करे

(माज़ी = अतीत्, भूतकाल)

दिल से जाना है ख़ुशी को तो चली ही जाये
रोज़ घर छोड़ के जाने का तमाशा न करे

ज़िन्दगी बख़्शेगी मर जाने के बेहतर मौक़े
उससे कहिए अभी मरने का इरादा न करे

खुल के हंसता भी नहीं टूट के रोता भी नहीं
दिल वो काहिल जो कोई काम भी पूरा न करे

चाह जीने की नहीं हौसला मरने का नहीं
हाल ऐसा भी ख़ुदा और किसी का न करे

इतनी सी बात पे वो रूठ गया है फिर से
मैंने बस इतना कहा था कि वो रूठा न करे

दिल को समझाये कोई चार ही दिन की तो है बात
रंज जीने का अब इतना भी ज़्यादा न करे

- राजेश रेड्डी

No comments:

Post a Comment