Thursday, September 27, 2012

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

(दयार = शहर), (आलम-ए-नापायदार = नश्वर जगत)

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में

(फ़स्ल-ए-बहार = बहार का मौसम)

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

(दिल-ए-दाग़दार = घायल हृदय)

इक शाखे-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमान,
कांटे बिछा दिए हैं दिल-ए-लालाज़ार में

(शादमान = ख़ुश, प्रसन्न)

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में

(उम्र-ए-दराज़ == लम्बी उम्र)

दिन ज़िन्दगी के खत्म हुए शाम हो गई
फैला के पाँव सोयेंगे कुंजे-मज़ार में

(कुंजे-मज़ार = कब्र के कोने में)

काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में

कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

(कू-ए-यार = यार की गली)

-बहादुर शाह ज़फ़र

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