Thursday, November 22, 2012

हर एक शय और महंगी और महंगी होती जा रही है,
बस एक ख़ूने-बशर है जिसकी अर्ज़ानी नहीं जाती।
-अली सरदार जाफ़री

[(शय = वस्तु, चीज), (ख़ूने-बशर = आदमी/ इंसान का खून), (अर्ज़ानी = सस्तापन)]

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