Sunday, December 2, 2012

ज़िन्दगी तूने लहू लेके दिया कुछ भी नहीं,
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं?

मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं।

हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहाँ,
सामने जिनके वो सचमुच का ख़ुदा कुछ भी नहीं।

या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार,
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं।

दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं।
-राजेश रेड्डी

 

1 comment:

  1. dil bhi ek jid pe ada.........
    .....................kuchh bhi nahi....

    sp

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