कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब अभी तक गा रहा हूँ मैं
फ़िराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है
गिरेबा चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है
हर एक पल मुस्करा कर, अश्क पीना और मुश्किल है
हमारी बदनसीबी ने हमे इतना सिखाया है
किसी के इश्क में मरने से, जीना और मुश्किल है
ये चादर सुख की मौला क्यों सदा छोटी बनाता है ?
सिरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छूट जाता है
तुम्हारे साथ था मैं तो ज़माने भर में रुसवा था
मगर अब तुम नहीं हो तो ज़माना साथ गाता है
जिसका तीर चुपके से दिल के पार होता है
वो गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से कहना न दिल की बात तो कभी भूले से
यहाँ ख़त भी दो पल में, अखबार होता है
ये दिल बर्बाद कर के इसमें क्यूँ आबाद रहते हो?
कोई कल कह रहा था तुम इलाहाबाद रहते हो
ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दी मेरे मौला?
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो
बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम, हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
कोई मंजिल नहीं जचती, सफ़र अच्छा नहीं लगता
मैं घर लौट भी जाऊं, तो घर अच्छा नहीं लगता
करूँ मैं कुछ भी तो अब दुनिया को अच्छा हीं लगता है
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन, मगर अच्छा नहीं लगता
समुन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है, मैं इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता
मुझे बेहोश कर साकी पिला भी कुछ नहीं हमको
करम भी कुछ नहीं हमको, सिला भी कुछ नहीं हमको
मोहब्बत ने दिया था सब, मोहब्बत ने लिया है सब
मिला भी कुछ नहीं हमको, गिला भी कुछ नहीं हमको
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यूँ नहीं करता?
कई जन्मों से बंदी है, बगावत क्यूँ नहीं करता?
कभी तुमसे थी जो वोही शिकायत है ज़माने से
मेरी तारीफ करता है मोहब्बत क्यूँ नहीं करता?
पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पाई कभी मै कह नही पाया
-डॉ. कुमार विश्वास
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हक़ीकत में बदल बैठा तो हंगामा
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब अभी तक गा रहा हूँ मैं
फ़िराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है
गिरेबा चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है
हर एक पल मुस्करा कर, अश्क पीना और मुश्किल है
हमारी बदनसीबी ने हमे इतना सिखाया है
किसी के इश्क में मरने से, जीना और मुश्किल है
ये चादर सुख की मौला क्यों सदा छोटी बनाता है ?
सिरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छूट जाता है
तुम्हारे साथ था मैं तो ज़माने भर में रुसवा था
मगर अब तुम नहीं हो तो ज़माना साथ गाता है
जिसका तीर चुपके से दिल के पार होता है
वो गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से कहना न दिल की बात तो कभी भूले से
यहाँ ख़त भी दो पल में, अखबार होता है
ये दिल बर्बाद कर के इसमें क्यूँ आबाद रहते हो?
कोई कल कह रहा था तुम इलाहाबाद रहते हो
ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दी मेरे मौला?
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो
बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम, हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
कोई मंजिल नहीं जचती, सफ़र अच्छा नहीं लगता
मैं घर लौट भी जाऊं, तो घर अच्छा नहीं लगता
करूँ मैं कुछ भी तो अब दुनिया को अच्छा हीं लगता है
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन, मगर अच्छा नहीं लगता
समुन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है, मैं इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता
मुझे बेहोश कर साकी पिला भी कुछ नहीं हमको
करम भी कुछ नहीं हमको, सिला भी कुछ नहीं हमको
मोहब्बत ने दिया था सब, मोहब्बत ने लिया है सब
मिला भी कुछ नहीं हमको, गिला भी कुछ नहीं हमको
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यूँ नहीं करता?
कई जन्मों से बंदी है, बगावत क्यूँ नहीं करता?
कभी तुमसे थी जो वोही शिकायत है ज़माने से
मेरी तारीफ करता है मोहब्बत क्यूँ नहीं करता?
पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पाई कभी मै कह नही पाया
-डॉ. कुमार विश्वास
No comments:
Post a Comment