Saturday, February 23, 2013

जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो,
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं।

(पशेमाँ = लज्जित, शर्मिंदा)

ज़िन्दगी पर इससे बढ़कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़',
उसका ये कहना कि तू शायर है, दीवाना नहीं।

(तंज़ = ताना, व्यंग्य)

-अहमद फ़राज़

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