जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो,
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं।
(पशेमाँ = लज्जित, शर्मिंदा)
ज़िन्दगी पर इससे बढ़कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़',
उसका ये कहना कि तू शायर है, दीवाना नहीं।
(तंज़ = ताना, व्यंग्य)
-अहमद फ़राज़
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं।
(पशेमाँ = लज्जित, शर्मिंदा)
ज़िन्दगी पर इससे बढ़कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़',
उसका ये कहना कि तू शायर है, दीवाना नहीं।
(तंज़ = ताना, व्यंग्य)
-अहमद फ़राज़
No comments:
Post a Comment