Sunday, March 3, 2013

हाँ ये सच है, गुज़रे दिन की बातें अक्सर करता है,
लेकिन माज़ी की गलियों में दिल जाने से डरता है ।

(माज़ी = भूतकाल, बीता हुआ समय, गुज़रा हुआ ज़माना)

रफ़्ता-रफ़्ता मेरी जानिब मंज़िल बढ़ती आती है,
चुपके-चुपके मेरे हक़ में कौन दुआएँ करता है ।
-आलोक श्रीवास्तव

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