Sunday, March 24, 2013

हालात मयक़दे के करवट बदल रहे हैं,
साक़ी बहक रहा है मयकश संभल रहे हैं ।

किसको बताएं कबसे, हम ज़िन्दगी के राही,
फूलों की आरज़ू में काँटों पे चल रहे हैं ।

तुम शौक़ से मनाओ जश्ने-बहार यारों,
इस रौशनी से लेकिन कुछ घर भी जल रहे हैं ।

पहले तो मेरी कश्ती तूफाँ में छोड़ आए,
साहिल पे अब न जाने क्यों हाथ मल रहे हैं ।

ऐ हमसफ़र ये शायद तुझको ख़बर नहीं है,
कुछ हादसे भी मेरे हमराह चल रहे हैं ।

कितने ग़मों को हमने हंस कर छुपा लिया है,
कुछ ग़म 'अमीर' लेकिन अश्कों में ढल रहे हैं ।

-अमीर मीनाई





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