Thursday, April 11, 2013

तहसीन के लायक तिरा हर शेर है 'अकबर',
अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक ।
-अकबर इलाहाबादी

[(तहसीन = प्रशंसा), (अहबाब = दोस्त, मित्र), (बज़्म = महफ़िल, सभा)]

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