Wednesday, April 24, 2013

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो,
कोई फ़ज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो।


दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से,
मगर अकेले में अपना भी एहतराम करो।


हमेशा अमन नहीं होता फ़ाख़्ताओं में,
कभी कभार ओक़ाबों से भी कलाम करो।

हर एक बस्ती बदलती है रंग रूप कई,
जहाँ भी सुब्ह गुज़ारो उधर ही शाम करो।

ख़ुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी,
वो अपना काम करेगा तुम अपना काम करो।
-निदा फ़ाज़ली



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