खुला है दर प तिरा इंतेज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर एतेबार जाता रहा
(ख़ुलूस = सरलता और निष्कपटता, सच्चाई, निष्ठां)
किसी की आँख में मस्ती तो आज भी है वही
मगर कभी जो हमें था ख़ुमार जाता रहा
कभी जो सीने में एक आग थी वो सर्द हुई
कभी निगाह में जो था शरार जाता रहा
(शरार = चिंगारी)
अजब-सा चैन था हमको कि जब थे हम बेचैन
क़रार आया तो जैसे क़रार जाता रहा
(क़रार = चैन)
कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
-जावेद अख़्तर
ख़ुलूस तो है मगर एतेबार जाता रहा
(ख़ुलूस = सरलता और निष्कपटता, सच्चाई, निष्ठां)
किसी की आँख में मस्ती तो आज भी है वही
मगर कभी जो हमें था ख़ुमार जाता रहा
कभी जो सीने में एक आग थी वो सर्द हुई
कभी निगाह में जो था शरार जाता रहा
(शरार = चिंगारी)
अजब-सा चैन था हमको कि जब थे हम बेचैन
क़रार आया तो जैसे क़रार जाता रहा
(क़रार = चैन)
कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में
मै ये उम्मीद लिए बार-बार जाता रहा
-जावेद अख़्तर
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