Wednesday, May 29, 2013

दुश्वार काम था तेरे ग़म को समेटना
मैं ख़ुद को बाँधने में कई बार खुल गया

मिट्टी में क्यों मिलाते हो मेहनत रफ़ूगरों
अब तो लिबासे जिस्म का हर तार खुल गया
-मुनव्वर राना

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