कल जहाँ दीवार थी, है आज इक दर देखिए
क्या समाई थी भला दीवाने के सर, देखिए
पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत
पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए
[(पुर-सुकूँ = शांतिमय), (बत = हंस, बतख)]
छोडकर जिसको गए थे आप कोई और था
अब मै कोई और हूँ वापस तो आकर देखिए
छोटे-से घर में थे देखे ख़्वाब महलों के कभी
और अब महलों में हैं तो ख़्वाब में घर देखिए
ज़ह्ने-इन्सानी इधर, आफ़ाक़ की वुसअत उधर
एक मंज़र है यहाँ अन्दर कि बाहर देखिए
[(ज़ह्ने-इन्सानी = मानव का मस्तिष्क), (आफ़ाक़ = दुनियाएँ), (वुसअत = विस्तार)]
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
-जावेद अख़्तर
क्या समाई थी भला दीवाने के सर, देखिए
पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत
पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए
[(पुर-सुकूँ = शांतिमय), (बत = हंस, बतख)]
छोडकर जिसको गए थे आप कोई और था
अब मै कोई और हूँ वापस तो आकर देखिए
छोटे-से घर में थे देखे ख़्वाब महलों के कभी
और अब महलों में हैं तो ख़्वाब में घर देखिए
ज़ह्ने-इन्सानी इधर, आफ़ाक़ की वुसअत उधर
एक मंज़र है यहाँ अन्दर कि बाहर देखिए
[(ज़ह्ने-इन्सानी = मानव का मस्तिष्क), (आफ़ाक़ = दुनियाएँ), (वुसअत = विस्तार)]
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
-जावेद अख़्तर
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