ख़्वाब के गाँव में पले है हम
पानी छलनी में ले चले हैं हम
छाछ फूँकें कि अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले हैं हम
ख़ुद है अपने सफ़र की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले हैं हम
[(दुश्वारी = मुश्किल), (आबले = छाले)]
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियाँ
तूने ढाला है और ढले हैं हम
क्यूँ हैं, कब तक हैं, किस की खातिर हैं,
बड़े संजीदा मसअले हैं हम
(संजीदा = गंभीर), (मसअले = समस्या)
-जावेद अख़्तर
पानी छलनी में ले चले हैं हम
छाछ फूँकें कि अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले हैं हम
ख़ुद है अपने सफ़र की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले हैं हम
[(दुश्वारी = मुश्किल), (आबले = छाले)]
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियाँ
तूने ढाला है और ढले हैं हम
क्यूँ हैं, कब तक हैं, किस की खातिर हैं,
बड़े संजीदा मसअले हैं हम
(संजीदा = गंभीर), (मसअले = समस्या)
-जावेद अख़्तर
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