मुखौटा ले के इस के पूरे दाम लौटा दो,
मेरा लिबास मुझ को मेरा नाम लौटा दो।
सुलगते नूर के तूफ़ान जान-लेवा हैं,
हमें वो धीमे चराग़ों की शाम लौटा दो।
सुना है आप के हाथों में इक करिश्मा है,
जो हो सके तो सुकूने-अवाम लौटा दो।
हर एक शख्स के हाथों में दे के आईना,
हर एक शख्स को उसका मक़ाम लौटा दो।
उठा के शहर में ले जाओ अपनी सौग़ातें,
हमारे गाँव का सादा निज़ाम लौटा दो।
हमें भी अपने वुजूदों से काम लेना है,
हमारे खून के लबरेज़ जाम लौटा दो।
वक़ार कुछ नहीं काग़ज़ पे बिखरे लफ़्ज़ों का,
हमारे हाथ के लिक्खे पयाम लौटा दो।
[(वक़ार = भारी भरकमपन, प्रतिष्ठा, गंभीरता), (पयाम = समाचार, संदेश)]
-कँवल ज़ियाई
मेरा लिबास मुझ को मेरा नाम लौटा दो।
सुलगते नूर के तूफ़ान जान-लेवा हैं,
हमें वो धीमे चराग़ों की शाम लौटा दो।
सुना है आप के हाथों में इक करिश्मा है,
जो हो सके तो सुकूने-अवाम लौटा दो।
हर एक शख्स के हाथों में दे के आईना,
हर एक शख्स को उसका मक़ाम लौटा दो।
उठा के शहर में ले जाओ अपनी सौग़ातें,
हमारे गाँव का सादा निज़ाम लौटा दो।
हमें भी अपने वुजूदों से काम लेना है,
हमारे खून के लबरेज़ जाम लौटा दो।
वक़ार कुछ नहीं काग़ज़ पे बिखरे लफ़्ज़ों का,
हमारे हाथ के लिक्खे पयाम लौटा दो।
[(वक़ार = भारी भरकमपन, प्रतिष्ठा, गंभीरता), (पयाम = समाचार, संदेश)]
-कँवल ज़ियाई
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