Tuesday, June 11, 2013

जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया।

याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया।

हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया
जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया।

जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
इक इक नक़्श तेरा याद आया।

ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।
-अहमद फ़राज़

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