देखकर दिलकशी ज़माने की,
आरज़ू है फ़रेब खाने की ।
ऐ ग़मे ज़िन्दगी न हो नाराज़,
मुझको आदत है मुस्कुराने की ।
ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में,
रौशनी है शराबखाने की ।
(ज़ुल्मतों से = अंधेरों से)
-अदम
आरज़ू है फ़रेब खाने की ।
ऐ ग़मे ज़िन्दगी न हो नाराज़,
मुझको आदत है मुस्कुराने की ।
ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में,
रौशनी है शराबखाने की ।
(ज़ुल्मतों से = अंधेरों से)
-अदम
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