Friday, July 5, 2013

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं

यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं
-निदा फ़ाज़ली

No comments:

Post a Comment