Sunday, October 13, 2013

उम्मीदों के बाग़ सजाकर अरमानों के फूल खिलाओ
सच्चाई के किरदारों से दिलदारों के दिल गरमाओ
तदबीरों से तक़दीरों की तस्वीरों में रंग सजाओ

                 ख़ुशियों का सूरज चमकाकर अंधियारों का ज़ोर घटाओ 
                 दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ 

सागर के मैले पानी से अम्बर भी मैला होता है
अन्दर ही जब जंग छिड़ी हो बाहर अम्न से क्या होता है
फूलों के मन की ज़ुल्मत से गुलशन भी काला होता है
(ज़ुल्मत = अन्धकार)

                  रूहों के काले शोलों पर नेकी का अमृत बरसाओ 
                  दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ 

दिल के अंगारों में जलकर आँखों में आंसू आते हैं
अपने निर्मल पैमानों में अन्दर की ज्वाला लाते हैं
धरती पर गिरने से पहले अपना राज़ बता जाते हैं

                   नर्मी की गर्मी से अपने सीने के पत्थर पिघलाओ
                   दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ

धुंधला हो जब मन का दर्पण फिर दर्शन से क्या होता है
जिस बंधन से बांध न टूटें उस बंधन से क्या होता है
नफ़रत का जो विष बरसाए उस सावन से क्या होता है

                   बदहाली को दूर भगाकर ख़ुशहाली को पास बुलाओ
                   दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ

दिल के अन्दर की शक्ति से कट जाती हैं ज़ंजीरें भी
दिल के अन्दर की नर्मी से झुक जाती हैं शमशीरें भी
दिल के अन्दर की गर्मी से बन जाती हैं तक़दीरें भी

                   अन्दर का संसार बसाकर बाहर का संसार सजाओ
                   दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ

-असरार अकबराबादी

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