Saturday, October 5, 2013

ओ री दुनिया

सुरमई आँखों के प्यालों की दुनिया ओ दुनिया,
सतरंगी रंगों गुलालों की दुनिया ओ दुनिया,
अलसाई सेजों के फूलों की दुनिया ओ दुनिया रे,
अंगड़ाई तोडे कबूतर की दुनिया ओ दुनिया रे,
ऐ करवट ले सोयी हक़ीक़त की दुनिया ओ दुनिया,
दीवानी होती तबियत की दुनिया ओ दुनिया,
ख्वाहिश में लिपटी ज़रुरत की दुनिया ओ दुनिया रे,
इन्सां के सपनों की नीयत की दुनिया ओ दुनिया,

ओ री दुनिया, ओ री दुनिया,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,

ममता की बिखरी कहानी की दुनिया ओ दुनिया,
बहनों की सिसकी जवानी की दुनिया ओ दुनिया,
आदम के हव्वा से रिश्ते की दुनिया ओ दुनिया रे,
शायर के फ़ीके लफ़्ज़ों की दुनिया ओ दुनिया रे,

ग़ालिब के मोमिन के ख़्वाबों की दुनिया,
मजाज़ों के उन इन्कलाबों की दुनिया,
फैज़, फ़िराक़ों, साहिर व मख़दूम,
मीर, कि ज़ौक, किताबों की दुनिया,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

पलछिन में बातें चली जाती हैं हैं,
पलछिन में रातें चली जाती हैं हैं,
रह जाता है जो सवेरा वो ढूंढें,
जलते मकाँ में बसेरा वो ढूंढें,
जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो ये दुनिया,
अपना समझ के अपनों के जैसी उठा लो ये दुनिया,
छिट पुट सी बातों में जलने लगेगी संभालो ये दुनिया,
कट कुट के रातों में पलने लगेगी संभालो ये दुनिया,

ओ री दुनिया

वो कहते हैं की दुनिया ये इतनी नहीं है,
सितारों से आगे जहां और भी हैं,
ये हम ही नहीं हैं वहाँ और भी हैं,
हमारी हर एक बात होती वहीँ हैं,
हमें ऐतराज़ नहीं हैं कहीं भी,
वो आलिम हैं फ़ाज़िल हैं होंगे सही ही,
मगर फ़लसफ़ा ये बिगड़ जाता है जो वो कहते हैं,
आलिम ये कहता वहां ईश्वर है,
फ़ाज़िल ये कहता वहाँ अल्लाह है,
काबिल यह कहता वहाँ ईसा है,
मंज़िल ये कहती तब इंसान से कि तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया,
ये बुझते हुए चंद बासी चरागों, तुम्हारे ये काले इरादों की दुनिया


हे ओ री दुनिया, ओ री दुनिया, ओ री दुनिया

-पीयूष मिश्रा

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