बाँध रखा है ज़हन में जो ख़याल ,
उसमे तरमीम क्यूँ नहीं करते
बे-सबब उलझनों में रहते हो,
मुझको तसलीम क्यूँ नहीं करते
-ताहिर फ़राज़
( तरमीम = संशोधन, सुधार), (तसलीम = स्वीकारना)
उसमे तरमीम क्यूँ नहीं करते
बे-सबब उलझनों में रहते हो,
मुझको तसलीम क्यूँ नहीं करते
-ताहिर फ़राज़
( तरमीम = संशोधन, सुधार), (तसलीम = स्वीकारना)
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