बना कर हाथ को तकिया वो अब फुटपाथ पे सोता,
कभी जिस शख्स में गणतंत्र का उल्लास देखा था |
मिरी आँखें उजाला देख कर खुलने से कतरातीं,
इन्ही आँखों से मैनें भोर का विन्यास देखा था |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"
कभी जिस शख्स में गणतंत्र का उल्लास देखा था |
मिरी आँखें उजाला देख कर खुलने से कतरातीं,
इन्ही आँखों से मैनें भोर का विन्यास देखा था |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"
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