कहूँ किस तरह मैं कि वो बेवफ़ा है
मुझे उसकी मजबूरियों का पता है
हवा को बहुत सरकशी का नशा है
मगर ये न भूले दिया भी दिया है
नज़र में है जलते मकानो मंज़र
चमकते है जुगनू तो दिल काँपता है
उन्हे भूलना या उन्हे याद करना
वो बिछड़े हैं जब से यही मशग़ला है
(मशग़ला = दिल-बहलाव)
गुज़रता है हर शक्स चेहरा छुपाए
कोई राह में आईना रख गया है
-खुमार बाराबंकवी
मुझे उसकी मजबूरियों का पता है
हवा को बहुत सरकशी का नशा है
मगर ये न भूले दिया भी दिया है
नज़र में है जलते मकानो मंज़र
चमकते है जुगनू तो दिल काँपता है
उन्हे भूलना या उन्हे याद करना
वो बिछड़े हैं जब से यही मशग़ला है
(मशग़ला = दिल-बहलाव)
गुज़रता है हर शक्स चेहरा छुपाए
कोई राह में आईना रख गया है
-खुमार बाराबंकवी
No comments:
Post a Comment