खुद से आँख मिलाता है
फिर बेहद शरमाता है
कितना कुछ उलझाता है
जब खुद को सुलझाता है
खुद को लिखते लिखते वो
कितनी बार मिटाता है
वो अपनी मुस्कानों में
कोई दर्द छुपाता है
-विज्ञान व्रत
फिर बेहद शरमाता है
कितना कुछ उलझाता है
जब खुद को सुलझाता है
खुद को लिखते लिखते वो
कितनी बार मिटाता है
वो अपनी मुस्कानों में
कोई दर्द छुपाता है
-विज्ञान व्रत
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