Saturday, November 1, 2014

सुनी हिकायत-ए-हस्ती, तो दरमियाँ से सुनी
न इब्तिदा की ख़बर है, न इन्तेहाँ मालूम
-शाद अज़ीमाबादी

न इब्तिदा की ख़बर है, न इन्तेहाँ मालूम
रहा ये वहम के हम हैं, वो भी क्या मालूम

-शायर फ़ानी बदायूनी

(हिकायत-ए-हस्ती = आस्तित्व/ जीवन की कहानी), (दरमियाँ = बीच, मध्य), (इब्तिदा = आरम्भ, शुरुआत), (इन्तेहाँ = समाप्ति, अंत, परिणाम, फल)

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