फ़िज़ा तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार थी लेकिन
पहुँच के मंज़िल-ए-जाँना पे आँख भर आई
-फ़िराक़ गोरखपुरी
(फ़िज़ा = वातावरण), (तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार = बहार की सुबह की मुस्कराहट), (मंज़िल-ए-जाँना = प्रियतम को पाना)
पहुँच के मंज़िल-ए-जाँना पे आँख भर आई
-फ़िराक़ गोरखपुरी
(फ़िज़ा = वातावरण), (तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार = बहार की सुबह की मुस्कराहट), (मंज़िल-ए-जाँना = प्रियतम को पाना)
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