Thursday, November 20, 2014

फ़िज़ा तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार थी लेकिन
पहुँच के मंज़िल-ए-जाँना पे आँख भर आई

-फ़िराक़ गोरखपुरी

(फ़िज़ा = वातावरण),  (तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार = बहार की सुबह की मुस्कराहट), (मंज़िल-ए-जाँना = प्रियतम को पाना) 

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