Monday, December 29, 2014

वो के हर अहद-ए-मुहब्बत से मुकरता जाए

वो के हर अहद-ए-मुहब्बत से  मुकरता जाए
दिल वो ज़ालिम के उसी शख़्स पे मरता जाये

(अहद-ए-मुहब्बत = प्यार में किये हुए वादे)

मेरे पहलू में वो आया भी तो ख़ुश्बू की तरह
मैं उसे जितना समेटूँ वो बिखरता जाये

खुलते जायें जो तेरे बंद-ए-कबा ज़ुल्फ़ के साथ
रंग-ए-पैराहन-ए-शब और निखरता जाये

(बंद-ए-कबा = कुर्ते, कमीज़ या चोली की गाँठ), (रंग-ए-पैराहन-ए-शब = रात के वस्त्रों का रंग)

इश्क़ की नर्म-निगाही से हिना हों रुख़सार
हुस्न वो हुस्न जो देखे से निखरता जाये

(रुख़सार = कपोल, गाल), (हिना हों रुख़सार = गालों पर लाली छा जाना)

क्यूँ न हम उसको दिल-ओ-जान से चाहें 'तश्ना'
वो जो इक दुश्मन-ए-जाँ प्यार भी करता जाये

-आलम ताब तश्ना


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