Sunday, February 22, 2015

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी

(आशना = मित्र, दोस्त, यार, प्रेमी या प्रेमिका)

जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी

मरीज़-ए-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी

(शफ़ा= आरोग्य, तंदुरुस्ती, रोग से मुक्ति)

-जावेद अख़्तर

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