Sunday, May 17, 2015

ख़ामोश मैं और मेरे अफ़साने मुझे तकते हैं
स्याह में अभी ख़ून-ए-जिगर मिलना बाकी है

एक तेज़ धुएं का असर दिखता है
अंगारों का जलना तो अभी बाकी है

-रूपा भाटी

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