Sunday, May 31, 2015

कब खुला आना जहाँ में और कब जाना खुला

कब खुला आना जहाँ में और कब जाना खुला
कब किसी किरदार पर आख़िर ये अफ़साना खुला

पहले दर की चुप खुली फिर ख़ामुशी दीवारों की
खुलते-खुलते ही हमारे घर का वीराना खुला

(दर = दरवाज़ा)

जब तलक ज़िन्दा रहे समझे कहाँ जीने को हम
वक़्त जब खोने का आ पहुँचा है तो पाना खुला

जानने के सब मआनी ही बदल कर रह गए
हमपे जिस दिन वो हमारा जाना-पहचाना खुला

हर किसी के आगे यूँ खुलता कहाँ है अपना दिल
सामने दीवानों को देखा तो दीवाना खुला

थरथराती लौ में उसकी इक नमी-सी आ गई
जलते-जलते शम्अ पर जब उसका परवाना खुला

होंटों ने चाहे तबस्सुम से निभाई दोस्ती
शायरी में लेकिन अपनी ग़म से याराना खुला

(तबस्सुम = मुस्कराहट)

-राजेश रेड्डी

No comments:

Post a Comment