बना कर हमसफ़र क्यों रास्ते में छोड़ देता है
किनारे ढूंढती कश्ती को मांझी मोड़ देता है
मुकद्दर भी हमें अब न्याय सच्चा दे नहीं पाता
जिसे दिल में बसाते हैं वही दिल तोड़ देता है
-आर० सी० शर्मा "आरसी"
किनारे ढूंढती कश्ती को मांझी मोड़ देता है
मुकद्दर भी हमें अब न्याय सच्चा दे नहीं पाता
जिसे दिल में बसाते हैं वही दिल तोड़ देता है
-आर० सी० शर्मा "आरसी"
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