Friday, June 5, 2015

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँनिसार चले गए
तेरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए

(जाँनिसार = अपने प्राण न्यौछावर करने वाला), (सर-ए-रहगुज़ार = रास्ते में चलने वाले)

तेरी कज़-अदाई से हार के शब-ए-इंतज़ार चली गई
मेरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मेरे ग़मगुसार चले गए

(कज़-अदाई = रूखापन), (शब-ए-इंतज़ार = इंतज़ार की रात), (ज़ब्त-ए-हाल = अपना हाल प्रकट न होने देना), (ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला)

न सवाल-ए-वस्ल, न अर्ज़-ए-ग़म, न हिकायतें, न शिकायतें
तेरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए

(सवाल-ए-वस्ल = मिलने का प्रश्न), (अर्ज़-ए-ग़म = दुःख का बयान), (हिकायतें = बातें, किस्से, हाल), (अहद = समय, वक़्त, युग), (दिल-ए-ज़ार = दुखी/ बेबस दिल), (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

ये हमीं थे जिनके लिबास पर सर-ए-राह सियाही लिखी गई
यही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए

(सर-ए-राह = रास्ते में, सबके सामने), (सर-ए-बज़्म-ए-यार = प्रियतम की महफ़िल में)

न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या
जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए

(जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा = प्यार करने का पागलपन/ उन्माद), (रसन = रस्सी), (दार = सूली, फाँसी)


-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

https://www.youtube.com/watch?v=nrGaeg_PXsI


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