Saturday, September 12, 2015

शौक़ को आज़िम-ए-सफ़र रखिये

शौक़ को आज़िम-ए-सफ़र रखिये
बेख़बर बनके सब खबर रखिए

(शौक़ = चाहत, इच्छा, अभिलाषा), (आज़िम-ए-सफ़र = यात्रा का इरादा या विचार)

चाहे नज़रें हो आसमानों पर
पाँव लेकिन ज़मीन पर रखिए

मुझको दिल में अगर बसाना है
एक सहरा को अपने घर रखिए

(सहरा = विस्तार, जंगल, रेगिस्तान)

कोई नशा हो टूट जाता है
कब तलक़ खुद को बेख़बर रखिए

जाने किस वक़्त कूच करना हो
अपना सामान मुख़्तसर रखिए

(कूच = प्रस्थान, रवानगी), (मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

दिल को खुद दिल से राह होती है
किस लिए कोई नामाबर रखिए

(नामाबर = संदेशवाहक, डाकिया)

बात है क्या ये कौन परखेगा
आप लहजे को पुर-असर रखिए

(पुर-असर = प्रभावपूर्ण)

एक टुक मुझको देखे जाती हैं
अपनी नज़रों पे कुछ नज़र रखिए

-निकहत इफ़्तिख़ार

 

2 comments:

  1. "जाने किस वक्त कूच करना हो, अपना सामान मुख्तसर रखिये".......माशाअल्लाह...बहुत खूब।

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