Sunday, November 22, 2015

हँसते हँसते मेरी आँखें नम कर देते हैं

हँसते हँसते मेरी आँखें नम कर देते हैं
मुझको यूँ शर्मिंदा मेरे ग़म कर देते हैं

बात पता चलती है जब माँ की बीमारी की
भैया भाभी आना जाना कम कर देते हैं

शबनम को अंगारा कर देते हैं कुछ एहसास
और कभी अंगारों को शबनम कर देते हैं

(शबनम = ओस)

कुछ तो ज़माने की हवा भी बदली है
पूरी कसर कुछ मन के वहम कर देते हैं

हल्की हल्की बातें करके कुछ बेग़ैरत लोग
भारी भारी सा मन का मौसम कर देते हैं

आख़िर किस तहज़ीब पे आ कर ठहर गए हैं हम
अपनों को ही अपने गाली जम कर देते हैं

कोसों दूर चला जाता है साया भी हम से
समझ नहीं पाते क्या ऐसा हम कर देते हैं

-अशोक रावत

No comments:

Post a Comment