Thursday, December 31, 2015

कहानी के कभी अंजाम से आग़ाज़ तक जाएँ

कहानी के कभी अंजाम से आग़ाज़ तक जाएँ
ये ख़्वाहिश है किसी दिन ज़िन्दगी के राज़ तक जाएँ

(अंजाम = अंत, समाप्ति, परिणाम ), (आग़ाज़ = प्रारम्भ)

निकल कर साज़ के तारों से पहुँचेंगे वो ही दिल तक
जो नग़मे दिल के तारों से निकल कर साज़ तक जाएँ

कहा करती है कितनी अनकही बातें ख़मोशी भी
ज़रूरी तो नहीं नाले किसी आवाज़ तक जाएँ

(नाले = आर्तनाद, पुकार, चीत्कार, रुदन, रोना)

हमें फ़ुर्सत ही कब है ज़िन्दगी का बोझ ढोने से
उठाने के लिए जो हम किसी के नाज़ तक जाएँ

फ़लक यूँ तो बस इक परवाज़ की दूरी पे है, लेकिन
हम इन टूटे परों से कैसे उस परवाज़ तक जाएँ

(फ़लक = आसमान), (परवाज़ = उड़ान), (परों = पंखों)

बची है इक यही सूरत जहाँ में अम्न की अब तो
पलटकर तीर अपने अपने तीरअंदाज़ तक जाएँ

(अम्न = शांति, सुकून), (तीरअंदाज़ = तीर चलाने वाला)

किसी एज़ाज़ को आना है तो आएगा ख़ुद हम तक
हम अहल-ए-फ़न हैं क्यों चल कर किसी एज़ाज़ तक जाएँ

(एज़ाज़ = सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त), (अहल-ए-फ़न = कलाकार, गुणवान, हुनरमंद)

तमन्ना है कभी छू पाएँ 'ग़ालिब' के तख़य्युल को
ये अरमां है किसी दिन 'मीर' के अंदाज़ तक जाएँ

(तख़य्युल = सोच, विचार, कल्पना, खयाल)

-राजेश रेड्डी

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