Thursday, December 17, 2015

जो भी टूटा है वो टूटा है सँवरने के लिए

जो भी टूटा है वो टूटा है सँवरने के लिए
कौन रोता है तेरी याद में मरने के लिए

आँख नम होती है जब भी मैं समझ लेता हूँ
कोई खुशबू सी है तैयार बिखरने के लिए

तोड़ना चाहो जो वादे तो सबब मत ढूंढो
बेजुबानी भी बहुत होगी मुकरने के लिए

(सबब = कारण)

अबके पानी के बरसने का सबब तू जाने
रंग बरसे हैं तेरी मांग ही भरने के लिए

ज़िद पे आ जाऊँ तो खुद को भी डुबो देता हूँ
हौसला चाहिए दरिया में उतरने के लिए

तंग हाथों भी बहुत खर्च किया है खुद को
मेरी आदत है बहुत हद से गुजरने के लिए

‪-अस्तित्व अंकुर‬

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