Wednesday, February 24, 2016

कभी कभी कितना नुकसान उठाना पड़ता है

कभी कभी कितना नुकसान उठाना पड़ता है
ऐरों गैरों का एहसान उठाना पड़ता है

टेढ़े मेढ़े रस्तों पर भी ख्वाबों का यह बोझ
तेरी ख़ातिर मेरी जान उठाना पड़ता है

कैसी हवाएं चलने लगी हैं मेरे बागों में
फूलों को भी अब सामान उठाना पड़ता है

कौन सुनेगा रोना-गाना शोर शराबे में
मजबूरी में भी तूफ़ान उठाना पड़ता है

यूँ मायूस नहीं होते हैं कोई न कोई ग़म
अच्छे अच्छों को हर आन उठाना पड़ता है

गुलदस्ते की ख़्वाहिश रखने वालों को अक्सर
कोई ख़ार भरा गुलदान उठाना पड़ता है

(ख़ार = काँटा)

यहाँ कोई तफ्रीक़ नहीं है राजा हो या रंक
दिल का बोझ दिले-नादान उठाना पड़ता है

(तफ्रीक़ = बँटवारा)

मक्कारों की इस दुनिया में कभी कभी 'आलम'
अच्छे लोगों को बोहतान उठाना पड़ता है

(बोहतान = झूठा इलज़ाम, मिथ्या अभियोग)

- आलम खुर्शीद

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