Wednesday, February 24, 2016

मज़ा अलग है जीने में

मज़ा अलग है जीने में
राज़ अगर हों सीने में।

तूफां से टकराता हूँ
खस्ताहाल सफीने में।

(सफीना = नाव, कश्ती)

कभी कभी हंस लेते हैं
कभी सालों में महीने में।

गुज़री है कुछ यूं अब तक
टाट कभी पशमीने में।

फर्क नहीं फकीरों को
पत्थर और नगीने में।

मेहनत कर, बहा ज़रा
महक है फिर पसीने में।

हर सम्त दिखाई देता है
मथुरा कभी मदीने में।

(सम्त = तरफ, ओर)

ये आंसू हैं, शराब नहीं
जिगर लगता है पीने में।

- विकास वाहिद

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