Wednesday, February 24, 2016

थपक-थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं

थपक-थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं
वो ख़्वाब हम को हमेशा जगाते रहते हैं

उम्मीदें जागती रहती हैं, सोती रहती हैं
दरीचे शम्मा जलाते-बुझाते रहते हैं

(दरीचे = खिड़कियां, झरोखे)

न जाने किस का हमें इन्तिज़ार रहता है
कि बाम-ओ-दर को हमेशा सजाते रहते हैं

(बाम-ओ-दर = छत और दरवाज़ा)

किसी को खोजते हैं हम किसी के पैकर में
किसी का चेहरा किसी से मिलाते रहते हैं

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख)

वो नक़्श-ए-ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होता
तमाम उम्र जिसे हम बनाते रहते हैं

(नक़्श-ए-ख़्वाब = स्वप्न की तस्वीर), (मुकम्मल = सम्पूर्ण, पूरा)

उसी का अक्स हर इक रंग में झळकता है
वो एक दर्द जिसे हम छुपाते रहते हैं

(अक्स = प्रतिबिम्ब, छाया, चित्र)

हमें ख़बर है दोबारा कभी न आएंगे
गए दिनों को मगर हम बुलाते रहते हैं

ये खेल सिर्फ़ तुम्हीं खेलते नहीं 'आलम'
सभी हवा में लकीरें बनाते रहते हैं

- आलम खुर्शीद

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