Thursday, March 3, 2016

बुक से जब भी गुलाब निकले है

बुक से जब भी गुलाब निकले है
अश्क तब बेहिसाब निकले है

(अश्क = आँसू)

फ़ैसले जितने भी किये मैंने
सबके सब लाजवाब निकले है

मैंने ज्यादा किया है तुमने कम
प्यार के भी हिसाब निकले हैे

ये तो जुमला नहीं हक़ीक़त है
पत्थरों से भी आब निकले है

(आब = पानी, जल)

मैं हक़ीक़त जिसे समझता था
वो सभी बन के ख़्वाब निकले है

उनकी यादों को जब निचोड़ दिया
दर्द तब बेहिसाब निकले है

जिनको बेकार कहती थी दुनिया
बन के वो आफ़ताब निकले है

(आफ़ताब = सूरज)

'अक्स' टूटे हैं जाने दिल कितने
कल वो जब बे-हिजाब निकले है

(बे-हिजाब = बिना नकाब के)

‪-अर्जुन 'अक्स'

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