Tuesday, June 28, 2016

ज़माने में सबसे जुदा देखना चाहता है

ज़माने में सबसे जुदा देखना चाहता है 
अजीब है वो मुझमे ख़ुदा देखना चाहता है

मेरे हाल पर अब भी उसको यकीं ही नही है
जो चाक हो चुकी वो रिदा देखना चाहता है 

(चाक रिदा = फ़टी चादर)

यूँ मुझको ज़हर दे के यादों का अपनी तमाम शब
सहर को मुझे जिन्दा देखना चाहता है 

(शब = रात), (सहर = सवेरा, सुबह)

वो वाकिफ़ है खूब अपने ही अंजाम से यूँ
मगर इश्क़ फिर इब्तिदा देखना चाहता है

(इब्तिदा = आरम्भ, प्रारम्भ, शुरुआत)

क्यूँ है रस्म ये के दिल पे रख कर पत्थर 
पिता बेटियों की विदा देखना चाहता है 

ग़मों से मेरा भर के दामन उम्र भर के लिये 
ज़माना मेरी अब अदा देखना चाहता है 

नवाज़ा था जिस शख़्स को हर नेमत से ख़ुदा ने 
वो ही क्यूँ मुझे गदा देखना चाहता है 

(गदा = भिखारी)

ये इम्तेहान तेरे बेसबब भी नहीं हैं 'विकास'
वो तुझमें ही कुछ अलहदा देखना चाहता है 

(अलहदा = अलग, भिन्न)

- विकास वाहिद

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