ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
बच कर चले हमेशा मगर क़ाफ़िलों से हम
होने को रुशनास नयी उलझनों से हम
मिलते हैं रोज़ अपने कई दोस्तों से हम
(रुशनास = परिचित)
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम
मंज़िल की है तलब तो हमें साथ ले चलो
वाकिफ़ हैं ख़ूब राह की बारीकियों से हम
जिनके परों पे सुबह की ख़ुशबू के रंग हैं
बचपन उधार लाए हैं उन तितलियों से हम
कुछ तो हमारे बीच कभी दूरियाँ भी हों
तंग आ गए हैं रोज़ की, नज़दीकियों से हम
गुज़रें हमारे घर की किसी रहगुज़र से वो
परदें हटाएँ, देखें उन्हें खिड़कियों से हम
जब भी कहा के - 'याद हमारी कहाँ उन्हें ?
पकड़े गए हैं ठीक तभी, हिचकियों से हम
बच कर चले हमेशा मगर क़ाफ़िलों से हम
होने को रुशनास नयी उलझनों से हम
मिलते हैं रोज़ अपने कई दोस्तों से हम
(रुशनास = परिचित)
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम
मंज़िल की है तलब तो हमें साथ ले चलो
वाकिफ़ हैं ख़ूब राह की बारीकियों से हम
जिनके परों पे सुबह की ख़ुशबू के रंग हैं
बचपन उधार लाए हैं उन तितलियों से हम
कुछ तो हमारे बीच कभी दूरियाँ भी हों
तंग आ गए हैं रोज़ की, नज़दीकियों से हम
गुज़रें हमारे घर की किसी रहगुज़र से वो
परदें हटाएँ, देखें उन्हें खिड़कियों से हम
जब भी कहा के - 'याद हमारी कहाँ उन्हें ?
पकड़े गए हैं ठीक तभी, हिचकियों से हम
-आलोक श्रीवास्तव
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